Friday 28 October 2011

' कैक्टस' 

वन में खिल रहा था पलाश
बाग़ में प्रमुदित था गेंदा, गुलाब

क्यूँकि-  
जल वृष्टि थी भरी-पूरी 
फिर पास में थी कल-कल करती नदी
धरा की प्रकृति थी भुर-भुरी
माली की खुरपी  थी  भी प्यारी 
खाद और कीटनाशक की थी भरमारी 

पर -

जोर की गर्मी  में आदित्य की टेढ़ी 
एक ही भ्रकुटी के समक्ष कालकलवित हो गए 
जो थे गेंदा और गुलाब
पलाश भी हो गया बे-आब 

परन्तु

वन में फूलता रहा तो 
सिर्फ एक फूल
कैक्टस-----

 कैक्टस के खिले फूलों के देखकर मुझे लगा की जीवन और वन दोनों समरूप हैं. अगर हम कैक्टस की तरह जिए तो कम सुविधाओं में प्रसन्न रह सकते हैं. आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित हैं.

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