Wednesday 24 April 2013




तन्हा रातों  की ईंटों में लगा हैं जुस्तजू   का गारा
पलकों के  बिछे पावड़े  ,है  बाजुओं का  बिछोना


जब मंजिल मिल ही गयी,फिर अब और कहाँ जाना
ठहर जा वक़्त!  बड़ी  मुश्किल से बना यह  ठिकाना

राम किशोर उपाध्याय
24-4-2013

2 comments:


  1. सुंदर रचना
    उत्क्रष्ट प्रस्तुति


    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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  2. वाह......

    बहुत सुन्दर!!!

    अनु

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