Wednesday 12 June 2013

कुछ खास हैं 
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लबों पे प्यास और दिल में आस है 
लगता है  मेरा नदीम आस पास है 

हर रात में गीली होती है  पत्तियां 
गिरी चादर पे शबनम बड़ी खास है 

बिखरती है रौशनी रोज असमान से
चांदनी में आज  घुली हुई मिठास हैं

सजती है महफिले तो खास-ओ-आम  
गाया गीत आज उसने बहुत बिंदास हैं   

कोई कुछ भी  कहे, मुझे क्या  पड़ी है 
जब   खुदा ही मेरा महबूब-ए-खास हैं

रामकिशोर उपाध्याय 

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