Friday 16 August 2013

उससे कुछ कहते जाना
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हिमाच्छादित
पर्वत शिखर पर रचना  हैं ठिकाना

एस्किमो  बन
इग्लू  में रहना है दिखाना

अक्षर बन
विधाओं का तारा मंडल हैं बनाना

अनुभूतियों बन
सागर लहरों पर तैराना हैं आशियाना

उन्मुक्त बन
अवगुंठित ह्रदय -पुष्प है खिलाना

पवन बन
मृदुल भावना सा हैं बह जाना  

मेघ बन
भावों की झड़ी सा है रोना रुलाना

काजल बन
प्रिया के चक्षुओं में है जी जाना

प्रार्थना बन
उससे बिन बोले कहना है बताना

और अंत में.............................

खाक बन
प्रभु की चरण -रज में हैं मिलजाना .

रामकिशोर उपाध्याय    

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