Sunday 29 September 2013

माथा गरम रखो और कुर्सी पकड़ के :::::::::::::::सफल अधिकारी के गुण :

यह एक मनोरंजक किस्सा हैं और अपने में पूरी सार्थकता लिए हुए। यह एक मजे दार किस्सा एक प्रोफेसर साहेब ने सुनाया। एक बार एक अँगरेज़ गवर्नर का एक खानसामा था और वह भी उनका मुंहलगा। उस खानसामें के बेटे ने हाई स्कूल पास किया तो पिता को चिंता सताने लगी नौकरी की। अँगरेज़ गवर्नर का खानसामा था इसलिए बहुत ज्यादा चिंता नहीं थी। उसने एक दिन गवर्नर साहेब के लिए जी जान लगाकर उनकी पसंद का मुर्गा पकाया और खाने की मेज पर सजा दिया। खाने के बाद गवर्नर साहेब से पुछा कि आज मुर्गा कैसा बना। अँगरेज़ खुश था और इसी बीच अपनी टूटीफूटी अग्रेज़ी में अपनी चिंता उसके सामने प्रकट कर दी। गवर्नर ने तुरंत अपने ADC को बुलाकर उसके बेटे को अच्छी सी नौकरी देने का आदेश दे दिया। वह ज़माना आज जैसा नहीं था कि अपने किसी मातहत   के रिश्तेदार को नौकरी न दे सके। अब तो चपरासी के लिए रेलवे में तो महाप्रबंधक की स्वीकृति चाहिए। ADC ने उसे तहसीलदार बना दिया। लेकिन एक महीने के बाद लड़का घबरा गया और अपने खानसामा पिता से कोई और नौकरी देने की इच्छा जाहिर की। पिता ने ADC को बेटे की दिक्कतें गिनाते हुए कोई और नौकरी की प्रार्थना की।

ADC ने उस लड़के को डांटा और कहा कि तुम कैसे आदमी हो कि अच्छी नौकरी करना भी नहीं जानते। इतनी जल्दी घबरा गए। तुम यही नौकरी करोगे, तुम्हे कुछ समझा रहा हूँ। देखो जब तुम्हारे सामने कोई मातहत आये उससे सीधे मुंह बात मत करों , उसे बिन बात भी डांट दो।अर्थात माथा हर वक़्त गरम रखों।वह तुमसे डरेगा और वफादार रहेगा। और कुर्सी पकड़ के रखों। लड़का बोल उठा वो कैसे ? अरे मुर्ख कुछ ऐसा काम करो कि तुम्हारा बॉस तुम्हे पसंद करे और न हटाये। समझे कुछ ? जी समझ गया और वापस तहसीलदार की नौकरी करने लगा और बाद में कलेक्टर भी बना।

तो दोस्तों '' माथा गरम रखो और कुर्सी पकड़ के रखो ''''......................

जो अधिकारी मित्र इसका पालन न करते हो एवं उनके पास और कोई जीवन मंत्र हो सफल होने के , वे इस नुस्खे के अनुपालन न करने के लिए स्वतंत्र हैं।

रामकिशोर उपाध्याय 

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