Wednesday 25 September 2013

श्री कृष्ण
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जगत
आपको जानता हैं
दो माताओं से
एक देवकी --
एक यशोदा ---

देवकी - अर्थात देव की जननी
इस माँ की कोख में आके
हे हरि !
आप देवकी को धन्य कर गए

यशोदा - यश की दात्री
इस माँ के आँचल में पलकर
ईश्वर के सरीखे
कार्यो का यशोगान आपने
विशिष्ट जन में नहीं
जन -जन से करा दिया
हे हरि !

आप तो हैं विशेष -
राज करे तो राजनीतिज्ञ
कल्याण करे तो देव
छल करे तो कूटनीतिज्ञ
युद्धय में योद्ध्या
अर्जुन के सारथी
अध्यात्म में गीता
सुदामा के मीता
द्रौपदी/कृष्णा के भाई
दुर्योधन से लड़ाई
अनंत है गाथा
अंत में शरीर
के पैर में तीर
एक सामान्य जन सा जीवन
कभी भोग/विलास की अनुकूलता
कभी संघर्ष सी प्रतिकूलता
कृष्ण कभी हारता नहीं
कृष्ण कभी जीतता नहीं
जीतता हैं-
मित्र सुदामा
योद्धा अर्जुन
बहन द्रौपदी
राधा का प्रेम
हारता है -
दुर्योधन का दंभ
शकुनि की चाल
धृतराष्ट्र का संतान -प्रेम

पर मेरा कृष्ण --
मुझे लगता हैं
अभी मेरे कंधे पे हाथ रखेंगे
और कहेंगे मित्र, द्वापर नहीं हैं
परन्तु मैं अभी भी यही हूँ
आपके साथ
आपका कृष्ण
मेरे हाथ
में हैं तुमारा हाथ
बस तू जीवन-युद्ध कर
छोड़ दे शेष मुझपर,,,,,,,,,,,,,,,,

Ramkishore Upadhyay
25.09.2013

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