Monday 21 October 2013

















कोई हैं यहाँ
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खड़ा हूँ
बांस के जंगल में
प्रेम अधरों पे लिए पर
कोई बांसुरी नहीं मिल रही

शब्द भी हैं
सजे-सजे से पर
कोई कहानी नहीं मिल रही

आंख भी है
लाल-लाल सी पर
कोई निशानी नहीं मिल रही

हूँ खड़ा
एक मीनार पे
उगा-उगा सा पर
कोई जमीं नहीं मिल रही

अश्क हैं
थमे-थमे से पर
कोई रवानी नहीं मिल रही

तुम खड़े हो
पास-पास से पर
कोई दीवानी नहीं मिल रही

रामकिशोर उपाध्याय
21.10.2014


2 comments:

  1. खुद के अंदर से ही देखना होगा सब कुछ ...

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  2. दिगम्बर नासवा जी असली खोज यही से शुरी होती हैं ... आभार

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