Tuesday 29 October 2013

एकल काव्य -पाठ -एक साहित्य मंच के तहत 


शीर्षक अभिव्यक्ति" (उन्वान ) ---- 80

*दीप/दीया/दीपक/दियरा/दिअला/प्रदीप/शमा/चिराग/दिवाली/रौशनी/उजाला/प्रकाश/दीपवाली/प्रकाशपर्व***. पर मेरी एक विनम्र प्रस्तुति .


देहरी पर दीप 
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तम...
हैं बहुत छाया हुआ
पवन भी रूक सी गयी हैं
नभ भी अचंभित सा
अवनि को देख रहा हैं
बहुत से बवंडर हैं
शब्दों में उलझे हुए
पुष्प झुके झुके से है
उल्लू कई बोल रहे
सन्नाटे को चीरकर
तभी कोई विदा हुआ
किसी से पुनः मिलन के लिए
लगा कोई अपनी पोटली दबाये नभ से उतरा
सहसा मुझसे टकराया
खन-खन
की ध्वनि ने कहा
कि वे सोने और चांदी के सिक्के हैं

लक्ष्मी माता !
मैंने उनके चरण छू लिए
आप कहाँ थी?
कबसे ढूढ़ रहा हूँ
यह सब मुझे दे दो,शायद मेरे लिए हैं
मैंने भी कई दीप जलाये दिवाली पर
पूजा भी की हैं ...

यह उसको देती हूँ मैं
जो परिश्रम करे
तुम प्रतीक्षा करो ...
किसी उद्योगशाला की मशीन पर
किसी खेत और खलिहान में
जहाँ स्वेद की बुँदे वातावरण को महका रही हो
यह गंध
मुझे चन्दन की खुशबू से भी अधिक प्रिय हैं
फूल से अधिक मुझे प्रकाशयुक्त विचार पसंद हैं.
तुम श्रम का दीप रखो देहरी पर
आज दिवाली हैं ...
और अंधकार
मुझे जरा भी पसंद नहीं हैं....................

रामकिशोर उपाध्याय
29.10.2013

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