Tuesday 22 October 2013

बस तुम आ जाना 
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मैं आज
खिल उठी हूँ महकने के लिए,
एक फूल बनकर 
कल रात ही
मैंने अपने हाथों पर मेहंदी लगाई हैं
जो आज उभर आई है
गहरे लाल में मेरे विश्वास की भांति
आज मैंने सूरज से किरने उधार ली है
अपनी कटिमेखला के लिए
अवनि से अमावस मांगी
अंजन के लिए
पारिजात से पुष्प मांगे हैं
कानों के स्वर्णफूल हेतु
वेणी के लिए
चंपा और चमेली को रिझाया हैं
मांगी हैं ओस से नमी
उन कुछ पलों में
देह की स्निग्धता के लिए
हल्दी और चन्दन से
शुद्धता और निरोगता की प्रार्थना की
अप्सरा से सौन्दर्य
और मेनका से रिझाना लिया
भावों की धरा हैं
बस एक प्यास रह गयी हैं
उसके लिए सलिल के सामने नहीं झुकुंगी
अब बस तुम आ जाना
बालचन्द्र के उदय के साथ
स्पर्श का
अवदान देना हैं आपको ....
मेरी तृप्ति का अहसास ....
मेरी संतृप्ति का अहसास

रामकिशोर उपाध्याय

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