Tuesday 12 November 2013




‘मैं अमर होना नहीं चाहती’

ओंस में 
भीगी हुई पंखुडियां सी लिए 
यह देह ..........
किस देहरी पर धरु 
यहाँ हर ओर ताप और संताप हैं
पुन्य को खोजती-खोजती
हो गयी पापमय
और कल ही ली हैं
शपथ जीने की पोप से
यहाँ के ईश्वर ने
कहलवाया हैं कि देहरी भी
वर्जित हो गयी
हिरन्यकश्यप के वध के उपरांत
अमर तो
होना भी नहीं चाहती मैं .......

रामकिशोर उपाध्याय








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