Saturday 11 January 2014

मेरी यादें 
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मेरी यादें 
बरगद बन गयी थी 
कोई सौ साल पुराना
पत्ते भी नहीं आते
अब तो इस पर कोई पक्षी
घोंसला भी नहीं बनाता
कोई प्रेत भी नहीं टिकता
एक रात से ज्यादा
बहुत पहले
एक बूढा फ़कीर
दिया जलाता था
साल में एक बार
अब वो भी नहीं आता
शायद पुनर्जन्म
हो गया होगा उसका
गवाक्ष से देखा
कल ही मेरे बच्चे
एक बोंजाई खरीद के लाये
बरगद के पेड़ का
मुझे लगा मैं जिन्दा हो गया
अपनी यादों में
मेरे बच्चे मेरी यादों को
पाला पोसा करेंगे
अब
मैं
विलीन हो सकूँगा ....
वहां जहाँ तुम होंगे ...

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