Tuesday 7 January 2014

ये डूबती मीनारें 
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खड़े हैं तने कंगूरे
किसी मीनार के 
उभरे हैं अक्स 
किसी दीवार पे
पुष्प और पत्ती व वल्लरी के 
अनुपम सौन्दर्य के 
हम भी खुश हैं उन्हें देखकर 
उनके पत्थर पर
लिखे शासकों के नाम पढ़कर
ये मीनारे...
ये अक्स ....
उन लोगों की
व्यथा को भी कहते हैं
उन अनजान लोगों का
इतिहास भी कहते हैं
जिनके कभी हाथ टूटे
और कभी काट लिए गए
बिन किसी अपराध के ....
बिन किसी प्रतिरोध के .....
इन्हें तामीर करने में
शायद किसी दिन
भग्नावशेष बोल उठे
और कहने लगे
उनका श्रमिकों का इतिहास...
करते हुए आततायियों पर अट्ठाहास.....

रामकिशोर उपाध्याय

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