Wednesday 3 June 2015

आज ...मैं क्या कहूँ ? ============











आज ...मैं क्या कहूँ ?
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आज सब्जी की जगह उग रहे है कुकरमुत्ते
सरेआम अब भौंक रहे है. आदमी जैसे हो ये कुत्ते .................
मिल रही है भर पेट अब प्रोटीन
मगर इंसानियत अब हो गयी एक दो तीन
छल रही है अब यहाँ दाल रोटी
आदमी भी क्या करे ,फट गयी है जब साड़ी धोती
देश का हर गरीब अब बन गया बापू
टांग में जिसके बची है बस लंगोटी
और बन गया किसी नेता का भोपूं
लुट रहा है देश मेरा
हो रही है मिलावट
रो रहा है किसान मेरा
मिट रही है हाथ की लिखावट
फिर खड़ा है चौराहे पर
आज फिर भूखा मजदूर ,
बिलख रहे बच्चे सभी
सूख रहा नैनों का नीर
लोग ताने खड़े सीने पर उसके
मजबूरियां के तीखे भाले और तीर
और मजे कर रहे है निकम्मे खाते मालमत्ते ...
आज सब्जी की जगह उग रहे है कुकरमुत्ते
सरेआम अब भौंक रहे है. आदमी जैसे हो ये कुत्ते .................
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चल पड़े अब दूसरी ओर
है जहाँ गाड़ियाँ की रेलमपेल और नौकरों का शोर
कोई हुक्का बजा रहा
कोई हुक्म बजा रहा
कोई लिए खड़ा रकाबी
थूकने को पान साहेब का है अभी बाकी
बच्चा बना बाबा ,बेटी बनी बेबी
साथ में नौकर के पानी की भी बोतल देखी
कोई बना दरबान
कोई तो कोचवान
देश सेवा में जुटे है लोग महान
करेंगे खुद काम तो कौन देगा सम्मान
साथ ले लेंगे कुछ बन्दुकधारी
खायेंगे मुफ्त सब ,फिर भी नहीं होगी उधारी
लूट रहे कुछ लोग
फिर है वो सज्जन ,भद्र लोग
यहाँ तो मांगते है अलग-अलग भेष में कुछ हट्टेकट्टे
शाम को फिर भून रहे नोटों के भुट्टे
आज सब्जी की जगह उग रहे है कुकरमुत्ते
सरेआम अब भौंक रहे है. आदमी जैसे हो ये कुत्ते .................
*
कोई भगवान का भक्ति का प्यारा
कोई मजहब का सितारा
हर तरफ एक चोर है ..
आदमी न हो मानों शोर है
भाग रहा दिन रात लेकर बस में ट्रेन में
कभी जहाज में अपने गीले सूखे कपड़ेलत्ते ....
आज सब्जी की जगह उग रहे है कुकरमुत्ते
सरेआम अब भौंक रहे है. आदमी जैसे हो ये कुत्ते .................
*
बदलेगा कब यह शहर मेरा
बदलेगी कब ये सारी फिजायें
उग रही है हर खेत में आतंक की नागफनी और केक्टस
दिख रहा है आदमी बस बेदम और बेबस
चल रहे है खेल सारे ,लग रहे है अट्ठे पर सत्ते ....
आज सब्जी की जगह उग रहे है कुकरमुत्ते !!
सरेआम अब भौंक रहे है आदमी जैसे हो ये कुत्ते |||
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रामकिशोर उपाध्याय

2 comments:

  1. बहुत सही बातें आपने कविता के रूप में रचा....

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