Wednesday 10 May 2017

आप्पो दीपो भव


----------------
आप्पो दीपो भव
------------------
मैं नहीं हूँ बुद्ध
हो भी नहीं सकता
मैंने छोड़ा कहाँ यह जग विराट
मन अभी घूम आता है कई घाट
रहता हूँ अक्सर उचाट
लेकर भरे -भरे कई  माट  
कुछ अहम् के
कुछ वहम के
और तलशता रहता हूँ अपना साथ
उस अंधियार में ........
जहाँ बुद्ध ने कहाँ था
आप्पो दीपो भव ......
क्या अब बढ़ने लगे ढूंढने को हाथ
मेरे ही दीपक को ........?
शायद सिद्धार्थ को हो  यह पता
*
रामकिशोर उपाध्याय

1 comment:

  1. आदरणीय हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ |

    रामकिशोर उपाध्याय

    ReplyDelete