Saturday 13 May 2017

तब होती है भोर 
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सोई रात का 
पड़ता जब जीवन से साबका 
शबनम को गगरी में लेने 
चल पड़ती हैं किरणें पनघट की ओर
कुनबे की प्यास बुझाने
लखता उसे सूरज बनकर चितचोर
तब होती है भोर ..........
अलसाये सपने
आँखों में लगे चुभने
स्लेट पट्टी बन जाए अम्बर
उडान की चाहत लगे बढ़ने
और लक्ष्य को देख जब मन में नाचे मोर
तब होती है भोर
*
रामकिशोर उपाध्याय

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